October 6, 2024

Visitor Place of India

Tourist Places Of India, Religious Places, Astrology, Historical Places, Indian Festivals And Culture News In Hindi

Neelakurinji Flowers: 12 साल में सिर्फ एक बार खिलते है ये फूल, केरल में !

Neelakurinji Flowers: 12 साल में सिर्फ एक बार खिलते है ये फूल, केरल में !

यूं तो भारत में कई ऐसी जगह हैं जहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी ओर आकृर्षित करता है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात है. इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. देश में बहुत से ऐसे पर्यटन स्थल है जहां के मनोहर दृश्य लोगों का मन मोह लेते हैं. ऐसा ही कुछ दक्षिण भारत के केरल राज्य के जंगलों में पाए जाने वाले नीलकुरिंजी फूलों का इतिहास है.

दरअसल, नीलकुरिंजी नामक फूल दुनिया के कई असाधारण फूलों में से एक है. खास बात ये है कि नीलकुरिंजी के फूल 12 वर्षों में एक बार खिलते हैं. पर्यटकों को इन फूलों की खूबसूरती को देखने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ता है.

केरल के इडुक्की जिले के संथानपारा पंचायत के अंर्तगत आने वाले शालोम हिल्स पर एक बार फिर नीलकुरिंजी फूल खिल चुके हैं. ये फूल दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य के शोला जंगलों की प्राकृतिक खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नीलकुरिंजी स्ट्रोबिलैंथेस की एक किस्म है और ये एक मोनोकार्पिक प्लांट है. ये एक ऐसा पौधा है जिसे एक बार मुरझाने के बाद दोबारा खिलने में 12 साल का समय लगता है. आमतौर पर नीलकुरिंजी अगस्त के महीने से खिलना शुरू हो जाते हैं और अक्टूबर तक ही रहते हैं.

स्ट्रोबिलेंथेस कुन्थियाना को मलयालम और तमिल में नीलकुरिंजी और कुरिंजी के नाम से जाना जाता है. ये फूल केवल भारत के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्यों के शोला नामक जंगलों में ऊंचे पहाड़ों पर ही पाए जाते हैं.

नीलकुरिंजी ना केवल केरल की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं बल्कि वहां के पर्यटन कारोबार को भी बढ़ावा देते हैं. इन फूलों को देखने के लिए लोग भारी संख्या में यहां आते हैं. इतना ही नहीं, इन फूलों खूबसूरती देखने के लिए लोग लाखों रूपये खर्च करके केरल जाते हैं.

जानकारी के मुताबिक, इस बार 10 एकड़ से ज्यादा नीलकुरिंजी के फूलों ने शालोमकुन्नू को ढक लिया है. लेकिन इस बार कोरोना वायरस महामारी के मौजूदा हालात को देखते हुए यहां पर्यटकों को आने की अनुमति नहीं दी गई है.

इडुक्की के मूल निवासी बीनू पॉल, जो इडुक्की की बायो डायवरसिटी पर गहन अध्ययन करते हैं. उन्होंने कहा, इस बार कोविड के कारण, पर्यटकों को इन पहाड़ियों पर जाने की अनुमति नहीं है. स्ट्रोबिलेंथेस कुंथियाना के नाम से जाना जाने वाला नीलकुरिंजी का फूल इडुक्की में लोगों के लिए काफी महत्व रखता है. लेकिन इसके साथ ही, इस तरह की रिच बायो डायवरसिटी की रक्षा के प्रयास भी किए जाने जरूरी हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, तमिलनाडु की सीमा से लगे पश्चिमी घाट के अनाकारा मेट्टू हिल्स, थोंडीमाला के पास पुट्टडी और शांतनपुरा ग्राम पंचायत के सीमा से लगे गांव से अलग-अलग फूलों के खिलने के बाद नीलकुरिंजी पूरी तरह 12 वर्षों के बाद खिलते हैं.

पश्चिमी घाट के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग मौसमों में कई फूल खिलते हैं. इन फूलों के खिलने के बाद 12 वर्षों के लंबे समय के बाद नीलकुरिंजी का पूरी तरह से खिलना हो पाता है.